STP KYA HAI | STP FULL FORM पूरी जानकारी हिन्दी में

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) क्या है?

विषय सूची (Table of Contents)

  1. परिचय और परिभाषा
  2. सीवेज के मुख्य स्रोत
  3. STP का कार्य सिद्धांत
  4. सीवेज ट्रीटमेंट की प्रक्रियाएँ
  5. STP में उपयोग होने वाली प्रमुख तकनीकें
  6. STP के लाभ
  7. STP की चुनौतियाँ
  8. भारत में सीवेज ट्रीटमेंट की स्थिति
  9. कानूनी और पर्यावरणीय नियम
  10. भविष्य की संभावनाएँ और नवाचार

1. परिचय और परिभाषा

STP का फुल फॉर्म Sewage Treatment Plant है। STP एक ऐसी प्रणाली है जो मानव निर्मित गंदे जल (सीवेज) को साफ करने के लिए डिज़ाइन की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य दूषित जल को इस तरह शुद्ध करना है कि वह पर्यावरण के लिए सुरक्षित हो जाए। यह जल घरेलू, औद्योगिक और वाणिज्यिक स्रोतों से आता है, जिसमें हानिकारक रासायनिक और जैविक तत्व शामिल होते हैं।  

A Sewage Treatment Plant

गंदे पानी को सीधे नदी या नालों में छोड़ना पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण जल स्रोतों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और जलीय जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। STP इस प्रदूषण को रोकने के लिए बेहद जरूरी हो गया है, खासकर शहरी और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में।

सीवेज में मुख्यतः मल-मूत्र, खाना पकाने से बचा हुआ पानी, कपड़े धोने का पानी और उद्योगों से निकलने वाला रासायनिक जल होता है। ये सभी तत्व न केवल बदबू फैलाते हैं बल्कि संक्रमण और बीमारियों का कारण भी बनते हैं। STP इन तत्वों को हटाने का कार्य करता है।

आज के समय में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने और जल संकट को दूर करने के लिए STP का विकास और उपयोग अत्यंत आवश्यक हो गया है।

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2. सीवेज के मुख्य स्रोत

सीवेज मुख्यतः चार प्रमुख स्रोतों से आता है: घरेलू, औद्योगिक, वाणिज्यिक और प्राकृतिक। घरेलू स्रोतों में बाथरूम, शौचालय, रसोई और वॉशिंग मशीन से निकलने वाला पानी शामिल होता है। यह पानी जैविक और रासायनिक रूप से प्रदूषित होता है।

औद्योगिक सीवेज में फैक्ट्रियों, केमिकल प्लांट्स, और उत्पादन इकाइयों से निकलने वाले रसायन, तेल, धातु और अन्य घातक पदार्थ होते हैं। यह जल अत्यधिक प्रदूषित और कभी-कभी विषैला भी होता है।

वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों जैसे होटल, अस्पताल, मॉल और रेस्टोरेंट से भी भारी मात्रा में अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है। इसमें साबुन, तेल, डिटर्जेंट और अन्य कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो पर्यावरण के लिए खतरनाक हो सकते हैं।

वर्षा जल भी एक माध्यमिक स्रोत होता है, जो सड़क की गंदगी और अन्य अपशिष्टों को सीवर में पहुंचा देता है। सभी इन स्रोतों से निकले जल को शुद्ध करने के लिए STP की आवश्यकता होती है।

3. STP का कार्य सिद्धांत

STP का कार्य सिद्धांत तीन मुख्य स्तरों पर आधारित होता है: भौतिक, रासायनिक और जैविक शुद्धिकरण। सबसे पहले जल को ग्रिट चेंबर में भेजा जाता है, जहाँ से बड़े कणों को हटाया जाता है। इसे प्राइमरी ट्रीटमेंट कहते हैं।

इसके बाद जल को द्वितीयक ट्रीटमेंट यूनिट में भेजा जाता है, जहाँ सूक्ष्मजीवों की सहायता से कार्बनिक तत्वों को तोड़ा जाता है। इस प्रक्रिया को बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट कहते हैं, जिसमें बैक्टीरिया मलजल को खा जाते हैं।

यदि जल को और अधिक शुद्ध करना हो तो तृतीयक उपचार किया जाता है, जिसमें क्लोरीन, UV, या ओजोन जैसी विधियों का प्रयोग करके सूक्ष्म जीवाणु हटाए जाते हैं। यह प्रक्रिया जल को पीने योग्य नहीं, लेकिन सिंचाई और निर्माण में प्रयोग योग्य बना देती है।

STP का उद्देश्य जल से हानिकारक तत्व हटाकर उसे पुनः उपयोग योग्य बनाना है, जिससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होती है बल्कि जल संकट भी कम होता है।

4. सीवेज ट्रीटमेंट की प्रक्रियाएँ

प्राथमिक उपचार (Primary Treatment) में जल से बड़े ठोस कणों को हटाया जाता है। इसमें स्क्रीनिंग और ग्रिट रिमूवल का कार्य होता है। इससे गंदे पानी के प्रवाह को सामान्य किया जाता है।

द्वितीयक उपचार (Secondary Treatment) में बैक्टीरिया और फंगस जैसे सूक्ष्मजीवों की मदद से कार्बनिक पदार्थों को हटाया जाता है। यह चरण सबसे महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यही प्रदूषण के स्तर को सबसे अधिक कम करता है।

तृतीयक उपचार (Tertiary Treatment) में उन्नत तकनीकों से सूक्ष्मजीवों, धातुओं और रसायनों को हटाया जाता है। यह चरण आवश्यक होता है जब शुद्ध जल को सार्वजनिक स्थानों या कृषि में उपयोग करना हो।

इसके साथ-साथ कीचड़ प्रबंधन भी होता है, जिसमें बचे हुए ठोस अपशिष्ट को सुखाकर खाद या ऊर्जा में बदला जाता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया मिलकर STP को कार्यशील बनाती है।

5. STP में उपयोग होने वाली प्रमुख तकनीकें

STP में कई उन्नत तकनीकों का प्रयोग होता है। एक्टिवेटेड स्लज प्रोसेस सबसे आम तकनीक है जिसमें बैक्टीरिया मलजल को खाकर उसे शुद्ध करते हैं।

MBR (Membrane Bioreactor) तकनीक में जैविक और झिल्ली दोनों प्रकार की फिल्टरिंग होती है। इससे जल अधिक साफ और पुनः प्रयोग के योग्य बनता है।

SBR (Sequencing Batch Reactor) एक बैच प्रोसेस तकनीक है जिसमें सभी चरण एक ही टैंक में होते हैं। यह जगह और समय दोनों की बचत करता है।

UASB (Upflow Anaerobic Sludge Blanket) तकनीक में बिना ऑक्सीजन के बैक्टीरिया काम करते हैं और गैस उत्पन्न करते हैं जिसे ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

6. STP के लाभ

STP का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह प्रदूषित जल को साफ करके उसे दोबारा प्रयोग करने योग्य बनाता है। इससे जल स्रोतों का संरक्षण होता है।

दूसरा लाभ यह है कि यह जल जनित रोगों को रोकने में मदद करता है। शुद्ध जल के कारण बीमारियों का खतरा कम होता है।

तीसरा लाभ यह है कि STP पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है। नदियों और झीलों को प्रदूषित होने से बचाता है।

चौथा लाभ यह है कि इससे तैयार की गई कीचड़ का उपयोग जैविक खाद या बायोगैस उत्पादन में किया जा सकता है।

7. STP की चुनौतियाँ

STP स्थापित करना महंगा होता है। इसकी शुरुआत में बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है, जो छोटे नगरों के लिए कठिन हो सकता है।

दूसरी चुनौती इसका नियमित रखरखाव है। यदि समय पर रखरखाव न हो तो पूरी प्रणाली असफल हो सकती है।

तीसरी चुनौती प्रशिक्षित तकनीशियनों की कमी है, जो प्रणाली को सही से चला सकें। कई बार गलत संचालन से दुर्घटनाएँ होती हैं।

चौथी चुनौती यह है कि ये प्रणाली ऊर्जा पर निर्भर होती है, जिससे इसके संचालन की लागत बढ़ जाती है।

8. भारत में सीवेज ट्रीटमेंट की स्थिति

भारत में शहरी क्षेत्रों में कई STP स्थापित किए गए हैं, विशेषकर बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु में।

सरकार की योजनाएँ जैसे AMRUT (अमृत योजना) और SBM (स्वच्छ भारत मिशन) इस क्षेत्र में निवेश बढ़ा रही हैं।

हालांकि, कई नगरों और कस्बों में अब भी STP नहीं हैं, जिससे गंदा पानी सीधे नालों और नदियों में गिरता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर है, जहाँ न तो सीवरेज सिस्टम है और न ही शुद्धिकरण संयंत्र।

9. कानूनी और पर्यावरणीय नियम

भारत में जल प्रदूषण नियंत्रण के लिए जल अधिनियम 1974 लागू है, जिसमें STP की आवश्यकता का वर्णन है।

CPCB (Central Pollution Control Board) और राज्य स्तर पर SPCB इन संयंत्रों की निगरानी करते हैं।

STP को मानकों के अनुसार अपशिष्ट जल का उपचार करना होता है, अन्यथा जुर्माना लगाया जाता है।

इसके अलावा पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) के तहत बड़े संयंत्रों के लिए पूर्व अनुमोदन अनिवार्य होता है।

10. भविष्य की संभावनाएँ और नवाचार

भविष्य में स्मार्ट STP का विकास हो रहा है जिसमें सेंसर और IOT आधारित निगरानी प्रणाली लगी होती है।

ऊर्जा-कुशल तकनीकों का विकास भी तेजी से हो रहा है, जिससे संचालन लागत कम होगी।

सरकार और समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, जिससे STP की माँग और उपयोग बढ़ेगा।

हरित भवनों और स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में STP एक अनिवार्य घटक बनता जा रहा है।

STP प्रक्रियाओं की तुलना

उपचार स्तर मुख्य उद्देश्य तकनीक
प्राथमिक बड़े ठोस पदार्थ हटाना स्क्रीनिंग, ग्रिट रिमूवल
द्वितीयक कार्बनिक तत्व हटाना बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट
तृतीयक सूक्ष्मजीव, रसायन हटाना UV, ओजोन, क्लोरीनेशन

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. STP और ETP में क्या अंतर है?
    STP घरेलू जल को साफ करता है जबकि ETP (Effluent Treatment Plant) औद्योगिक अपशिष्ट जल को शुद्ध करता है।
  2. क्या STP के जल को पी सकते हैं?
    नहीं, STP का जल सिंचाई और निर्माण में प्रयोग योग्य होता है, पीने योग्य नहीं।
  3. STP लगाने की लागत कितनी होती है?
    यह क्षमता, तकनीक और स्थान पर निर्भर करता है, सामान्यतः लाखों से करोड़ों तक हो सकती है।
  4. क्या STP से ऊर्जा भी मिल सकती है?
    हाँ, कीचड़ से बायोगैस बनाई जा सकती है जो ऊर्जा का स्रोत बनती है।
  5. STP कितने समय में तैयार होता है?
    आकार और डिजाइन के अनुसार आमतौर पर 6 महीने से 2 वर्ष का समय लगता है।
  6. क्या ग्रामीण क्षेत्रों में STP उपयोगी है?
    हाँ, लेकिन वहाँ की स्थिति के अनुसार लघु STP या बायो-डायजेस्टर अधिक उपयुक्त होते हैं।
  7. क्या घरों में भी STP लगाया जा सकता है?
    बड़े भवन या सोसायटी में मिनी STP लगाया जा सकता है।
  8. STP संचालन के लिए कौन जिम्मेदार होता है?
    स्थानीय निकाय, नगर पालिका या निजी प्रबंधन कंपनी।
  9. STP से निकला कीचड़ कैसे निपटाया जाता है?
    इसे सुखाकर खाद, ईंधन या भरण में प्रयोग किया जाता है।
  10. STP में किस प्रकार के कर्मचारी कार्य करते हैं?
    इंजीनियर, ऑपरेटर, तकनीशियन और पर्यावरण विशेषज्ञ।

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